Born =12/अक्टूबर/1938

Death = 8/फरबरी/2016
1964 में मुंबई पत्र पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया।
1969 में उर्दू कविता का पहला संग्रह आया।
1998 में “साहित्य अकादमी पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।
2013 मे भारत सरकार की ओर से “पदम् श्री” से सम्मानित।
निदा फ़ाज़ली द्वारा लिखी कुछ प्रसिद्ध पंक्तियां
एक दिन तुझसे मिलने जरुर आऊंगा ज़िंदगी, मुझे तेरा पता चाहिए।
दुशमानी जमकर करो, लेकिन ये गुंजाइश रहे… जब कभी हम दोस्त हो जाएं, तो शर्मिंदा ना होना पड़े।
मिल भी जाते है, तो कतरा के निकल जाते है। हाय मौसम की तरह दोस्त बदल जाते है ।
***निदा के दोहे***
जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया
Bachcha bola dekh kar, masjid aalishaan, Allah tere ek ko, itna bada makaan.
सात समुद्र पार से कोई करे व्यापार, पहले भेजे सरहदे, फिर भेजे हथियार।
मैं रोया परदेश में, भीगी मां की आंख। दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार।
छोटा करके देखिए, जीवन का विस्तार। आखों भर आकाश है, बाहों भर संसार।
लेके तन के नाप को, घूमें बस्ती गांव। हर चादर की घेर से, बाहर निकले पांव।
नदियां सीचे खेत को, तोता कुतरे आम। सूरज ठेकेदार सा, सबको बांटे काम।
सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर। जिस दिन सोए देर तक, भूखा रहे फ़कीर।
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे
बदला न अपने आप को, जो थे वही रहे। मिलते रहे सभी से, मगर अजनबी रहे।
दुनिया न जीत पाओ तो, हारो न ख़ुद को तुम। थोड़ी बहुत तो ज़हन में नाराज़गी रहे।
गुज़रो जो बाग़ से, तो दुआ माँगते चलो। जिसमें खिले हैं फूल, वो डाली हरी रहे।
सुना है अपने गांव में, अब ना रहा वो नीम। जिसके आगे मंद थे, सारे वैध हकीम।
नेहरू ने लिखा नही, कुली के सिर का बोझ।
स्टेशन पर खत्म की, भारत तेरी खोज
धूप ‘में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
हर एक बात को, चुप-चाप क्यूँ सुना जाए। कभी तो हौसला कर के, नहीं कहा
वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो
फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं
पहले हर चीज़ थी अपनी, मगर अब लगता है। अपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं।
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा
किससे पूछूं कि कहाँ गुम हूँ बरसों से हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा
एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा
मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा
आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा
वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से किसको मालूम, कहाँ के हैं, किधर के हम हैं
घर को खोजे रात दिन, घर से निकले पांव। वो रास्ता ही खो गया, जिस रस्ते था गांव।
Raastay ab rasta nahi detay, Jab tak tera wasta nahi detay.
सीधा साधा डाकिया, जादू करे महान। इक ही थैली में भरे, आंसू और मुस्कान।
Tumhaara tajurba shayad alag ho, mujhe to ilm ne bhatka diya hai.
नक्शा उठाकर कोई नया शहर ठूंठिए, इस शहर में अब सभी से मुलाकात हो गई।
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिसको भी देखना हो कई बार देखना।
अन्दर मूरत पर चढ़े घी, पूरी, मिष्ठान मन्दिर के बाहर खड़ा, ईश्वर माँगे दान ।
निदा की शायरी
Duniya jise kehte hain, jaadu ka khilona hai,
Mil jaye toh mitti hai, kho jaye toh sona hai.
Gham ho ya khushi, dono kuch der ke saathi hain,
Fir rasta hi rasta hain, hasna hai na rona hai.
“मिट्टी का जिस्म ले कर, पानी के घर में हू।
मंजिल है मौत मेरी, और मैं हर पल सफर में हू।
होगा कतल मेरा पता है मुझको। पर ये मालूम नहीं के,
मैं किस कातिल की नज़र में हूं“
Tanha-tanha dukh jhelenge, mehfil-mehfil gaayenge, Jab tak aansu paas rahenge, tab tak geet sunayenge.
Bachchon ke chote haathon ko, chaand-sitaare chhoone do,
Chaar kitabein padh kar ye bhi, hum jaise ho jayenge. Achchi soorat wale saare, paththar dil hon mumkin hai,
Hum toh uss din raai denge, jis din dhoka khayenge.
अब खुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला।
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला ।
हर बेचेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा,
जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला।
उसको रुखसत तो किया था, मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला।
दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आँचल में,
ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला।
इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया,
कोई जल्दी में, तो कोई देर में जाने वाला।
Tu iss tarah se meri zindagi mein shamil hai,
Jahan bhi jaaun, ye lagta hain teri mehfil hai, Ye aasman, ye baadal ye raste, ye hawa.
Har ek cheez hai apni jagah thikaane se, Kai dino se shikayat nahi zamaane se,
ye zindagi hain tu safar ki manzil hai.
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव, हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव। सबकी पूजा एक सी, अलग-अलग हर रीत। मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत। पूजा घर में मूर्ती, मीर के संग श्याम। जिसकी जितनी चाकरी, उतने उसके दाम।
सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर। जिस दिन सोए देर तक, भूखा रहे फ़कीर। अच्छी संगत बैठकर, संगी बदले रूप। जैसे मिलकर आम से, मीठी हो गई धूप।
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास, पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास।
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान, मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान।
मुँह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन! आवाज़ों के बाज़ारों में, ख़ामोशी पहचाने कौन।
मन बैरागी तन अनुरागी कदम कदम दुश्वारी है। जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फनकारी है। औरों जैसे होकर भी हम बाइज़्ज़त हैं बस्ती में ।
कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ अपनी अय्यारी है।
Tere pairon chala nahi jo, dhoop chaon mein dhala nahi jo,
Woh tera sach kaise, jis pe tera naam nahi?
Tujhse pehle beet gaya jo, woh itihaas hai tera,
Tujhko hi poora karna hain, jo vanvaas hai tera.
Teri saansein jiya nahi jo, ghar aangan ka diya nahi jo, Woh Tulsi ki Ramayan hai, tera Ram nahi vo.

वालिद की वफ़ात पर
तुम्हारी कब्र पर मैं फातेहा पढ़ने नही आया, मुझे मालूम था, तुम मर नही सकते तुम्हारी मौत की सच्ची खबर जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था, वो तुम कब थे? कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा में गिर के टूटा था ।
मेरी आँखे
तुम्हारी मंजरो मे कैद है अब तक मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ वो, वही है जो तुम्हारी नेक नामी और बद-नामी की दुनिया थी ।
कहीं कुछ भी नहीं बदला, तुम्हारे हाथ मेरी उंगलियों में सांस लेते हैं, मैं लिखने के लिये जब भी कागज कलम उठाता हूं, तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी में पाता हूँ।
बदन में मेरे जितना भी लहू है, वो तुम्हारी लगजिशों नाकामियों के साथ बहती है, मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जेहन रहता है, मेरी बीमारियों में तुम मेरी लाचारियों में तुम |
तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा है, वो झूठा है, वो झूठा है, वो झूठा है, तुम्हारी कब्र में मैं दफन तुम मुझमें जिन्दा हो, कभी फुरसत मिले तो फातेहा पढने चले आना |